May 19, 2024
सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल बाद फरीदकोट रॉयल फैमिली का फैसला बेटियों के पक्ष में, 20 हजार करोड़ की है पूरी संपत्ति.
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सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल बाद फरीदकोट रॉयल फैमिली का फैसला बेटियों के पक्ष में, 20 हजार करोड़ की है पूरी संपत्ति.


चंडीगढ़ – 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति, हीरे-जवाहरात, बैंक बैलेंस, किला-महल और 30 साल की लंबी कानूनी लड़ाई. वो भी इसलिए क्योंकि बच्चों को कुछ मिला ही नहीं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसका भी निपटारा कर दिया. ये कहानी है फरीदकोट के महाराजा हरिंदर सिंह की, जिनकी वसीयत से जुड़े विवाद के मामले में बुधवार को सुप्रीम फैसला आ गया. 30 साल से चली आ रही इस कानूनी लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें लगभग 20,000 करोड़ रुपये की संपत्तियों में बहुमत का हिस्सा महाराजा की बेटियों अमृत और दीपिंदर कौर को दिया गया था.

चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एस रवींद्र भट की तीन जजों वाली बेंच ने दोनों पक्षों की दलील और वसीयतनामा और अन्य चीजों की जांच कर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे बुधवार को सुना दिया गया.

चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा, ‘एक बार वसीयत के साबित होने और वैध रूप से निष्पादित पाए जाने के बाद, वसीयत में विशेष क्लॉज के मामले में, शासक की छोड़ी गई संपत्तियों में महारानी मोहिंदर कौर का हिस्सा स्वाभाविक रूप से वसीयत द्वारा शासित होगा. इसलिए, हाई कोर्ट के निष्कर्ष पूरी तरह से सही थे और उस ओर से किसी भी चुनौती पर विचार करने का कोई कारण नहीं है.’

संपत्तियों की देखभाल करने वाले महरवाल खेवाजी ट्रस्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘ट्रस्ट केवल 30 सितंबर तक चैरिटेबल अस्पताल चलाने का हकदार होगा, इसके बाद प्रबंधन, वित्त और अन्य नियंत्रण के सभी पहलुओं सहित एक रिसीवर की नियुक्ति की जरूरत ऐसे आदेशों के अधीन होगी जो अदालत की ओर से तत्काल मामलों में डिक्री निष्पादित करने के लिए पारित किए जा सकते हैं.”

दरअसल महरवाल खेवाजी ट्रस्ट का कहना है कि हरिंदर सिंह की एक वसीयत के मुताबिक संपत्ति पर उसका अधिकार है. इसे महाराजा की जीवित बची दो बेटियों ने चुनौती देते हुए दावेदारी पेश की थी. उन्होंने तर्क दिया था कि महाराजा की संपत्ति में काफी पैतृक संपत्ति भी रही थी.

साल 2013 में चंडीगढ़ जिला अदालत ने वसीयत को वैध बताते हुए संपत्ति बेटियों को दी थी. लेकिन ट्रस्ट ने हाई कोर्ट का रुख किया. 2020 में हाई कोर्ट ने जिला अदालत के फैसले को बरकरर रखा. फिर इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां बेटियां ही जीतीं.