कांग्रेस में 21 अगस्त से अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की कवायद शुरू हो चुकी है। 28 अगस्त को इसे लेकर एक बैठक होगी। पार्टी के केंद्रीय चुनाव समिति के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री इसके फॉर्मेट का ऐलान करेंगे। इस बीच देशभर में फिर चर्चा है कि आखिर पार्टी अपना अध्यक्ष किसे बनाएगी। इसी कवायद के बीच गुलाम नबी आजाद ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। आजाद कांग्रेस में उन 23 नेताओं में शुमार हैं जो लगातार पार्टी की रीति-नीति में सुधार की वकालत करते रहे हैं। आजाद ने अपने इस्तीफे में राहुल गांधी को सीधे तौर पर इसका जिम्मेदार बताया है। आजाद के इस्तीफे के बाद समीकरण बदल सकते हैं, लेकिन कांग्रेस अपनी कवायद अगर जारी रखती है तो वे कौन से चेहरे हैं जिन पर पार्टी दांव लगा सकती है।
अशोक गेहलोत
मीडिया में सबसे ज्यादा चर्चा इसी चेहरे की है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर निकले हैं तभी से इस बात की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अशोक गेहलोत से सोनिया गांधी ने कहा है कि वे पार्टी को संभालें। लेकिन गेहलोत इसे लेकर बच रहे हैं। वे फिलहाल राजस्थान की कमान नहीं छोड़ना चाहते। गेहलोत नहीं चाहते कि उनकी अनुपस्थिति में सचिन पायलेट को मुख्यमंत्री बनाया जाए।
अंबिका सोनी एक ऐसा चेहरा हैं जिन पर भी पार्टी दांव खेल सकती है। वे यूपीए की सरकारों में मंत्री रह चुकी हैं। इंदिरा गांधी के दौर से राजनीति में सक्रिय अंबिका सोनी पंजाब से आती हैं। पंजाब से कांग्रेस के दूसरे धड़े के नेता मनीष तिवारी भी आते हैं। तिवारी जी-23 के सदस्य हैं। इस नाते पंजाब से अंबिका सोनी को आगे करने की पार्टी की रणनीति हो सकती है। पार्टी चाहती है पंजाब में सुनील जाखड़, कैप्टिन अमरिंदर सिंह के बाहर जाने और मनीष के बागी तेवर को देखते हुए पंजाब में अंबिका को आगे करके डैमेज रोका जा सकता है। इस रणनीति के तहत अंबिका सोनी को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है।
मुकुल वासनिक
पार्टी के वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के करीबियों में शुमार मुकुल वासनिक भी पार्टी के अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। पार्टी में सीताराम केसरी के बाद गांधी परिवार से ही अध्यक्ष रहे हैं। बीते 26 सालों में यह पहला मौका होगा जब परिवार से बाहर का कोई अध्यक्ष हो सकता है। हालांकि मुकुल वासनिक को लेकर पार्टी में कितनी स्वीकार्यता होगी, यह कहना संभव नहीं।
कुमारी शैलजा
कुमारी शैलजा हरियाणा से आती हैं। सोनिया गांधी की करीबी हैं। जी-23 में शामिल रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा हालांकि अब जी-23 में नहीं हैं, लेकिन पार्टी चाहती है कुमारी शैलजा आगे आएंगी तो भूपेंद्र और उनके समर्थकों के हौसले पस्त होंगे। सोनिया नेतृत्व वाली पार्टी चाहती है कि कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच की दूरी को इस्तेमाल किया जाए। कुमारी शैलजा यूपीए की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। उस वक्त भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री थे।
दिग्विजय सिंह
दिग्विजय सिंह ने स्वयं की ओर से दावेदारी की है। उन्होंने पार्टी में लोकतंत्र की दुहाई देते हुए एक चैनल से साक्षात्कार में कहा था, वे भी पार्टी में अध्यक्ष पद के प्रत्याशी हो सकते हैं। दिग्विजय सिंह को लेकर पार्टी हमेशा ही बैकफुट पर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के राजनीतिक करियर को दो हिस्सों में देखना चाहिए। पहले हिस्से में वे मुख्यमंत्री के रूप में थे, जिन्हें पार्टी ने सफल माना। इसके बाद के हिस्से में वे लगातार पार्टी की विभिन्न भूमिकाओं में हैं, लेकिन अलग-अलग मसलों पर हिंदू विरोधी रुख के कारण विवादों में रहे हैं। इसलिए पार्टी इन पर दांव नहीं खेलेगी।
पी चिदंबरम
पार्टी पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम को भी आगे कर सकती है। लेकिन उन पर लगे आरोपों के चलते पार्टी झिझकेगी। वे तमिलनाडु से आते हैं। तमिनल की शिवकासी से चुनाव लड़ते रहे हैं। एयरसेल मामले में उनका और उनके बेटे का नाम आया था। तब से ही वे आरोपों के घेरे में हैं। पार्टी इन पर दांव एक ही स्थिति में लगा सकती है, जब पार्टी को दक्षिण की ओर रुख करना हो।
कमलनाथ
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और यूपीए में अहम ओहदों पर मंत्री रह चुके कमलनाथ का नाम भी इसमें शामिल है। कमलनाथ पार्टी के अच्छे संगठनवादी नेता सिद्ध हो सकते हैं। वे पार्टी को संकट से बाहर भी निकाल सकते हैं। लेकिन उन्हें पूरी आजादी मिलने पर संदेह है। कमलनाथ ही इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्होंने मध्यप्रदेश में कांग्रेस को शिवराज सिंह चौहान की भाजपा के समकक्ष लाकर खड़ा किया है। 2003 से लगातार सत्ता से बेदखल चल रही कांग्रेस को 2018 में कमलनाथ ने ही सत्ता तक पहुंचाया था। उनकी कार्यशैली में यह स्पष्टता है। वे सर्वे, कार्यकर्ता, नेता और मुद्दों को समानांतर मांजते रहते हैं। एक अच्छे ऑर्गेनाइजर हैं। ऐसे में राष्ट्रीय भूमिका में आजादी के साथ आने से कांग्रेस को फायदा होगा, लेकिन मध्यप्रदेश हाथ से निकल सकता है।
अधीर रंजन चौधरी
अधीर रंजन चौधरी बंगाल से आते हैं। बहुत वाचाल हैं। सदन में सक्रिय रहते हैं। लेकिन वे पार्टी में आंतरिक रूप से टीएमसी को साथ लेकर चलने के पक्ष में नहीं है। उनका बंगाल में ज्यादा इंट्रेस्ट रहता है। जबकि पार्टी 2024 में महागठबंधन की कल्पना पर काम कर रही है, जिसमें टीएमसी अहम किरदार है। ऐसे में अधीर रंजन को लेकर पार्टी आगे नहीं बढ़ सकती। साथ ही अधीर रंजन चौधरी का लोकसभा में जम्मू-कश्मीर पर दिया गया बयान भी कांग्रेस की छवि पर उल्टा असर डाल चुका है।
मल्लिकार्जुन खड़गे
पार्टी के सबसे वफादार और सौम्य नेता कर्नाटक से आते हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे वर्तमान में सदन में नेता विपक्ष हैं। इसलिए उनकी बात आगे बढ़ सकती है। वे सदन में सक्रिय रहते हैं। मोदी सरकार को घेरते रहते हैं। सकारात्मक मुद्दों पर चर्चा करते हैं। अपनी बात को मजबूती से रखते हैं। पार्टी में उन नेताओं में शुमार हैं, जो भाजपा से लड़ सकते हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष के रूप में पार्टी को देशभर में खड़ा कर सकते हैं।
प्रियंका वाड्रा
कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष की फेहरिश्त में अंतिम नाम प्रियंका वाड्रा हैं। वे लगातार उत्तरप्रदेश में सक्रिय रहती हैं। उनका विपक्ष का प्रदर्शन, नीति, रीति आक्रामक है। वे अगर आगे आती हैं तो पार्टी में मजबूती आएगी। प्रियंका को जितनी आजादी मिलेगी उतनी वे पार्टी को संभाल सकती हैं। प्रियंका की कार्यशैली, प्रशासनिक समझ, राजनीतिक जानकारी, सरकारों के विरोध में जूझने की क्षमता, मुद्दों को उठाने की क्षमता, प्लानिंग, कैनवासिंग अच्छी है। पार्टी उन्हें अध्यक्ष बनाती है तो यह सूझबूझ वाला कदम होगा। हालांकि इस कदम के बाद कांग्रेस को वंशवाद के सवालों का सामना करना होगा।